(Sample Material) रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB आरआरबी) परीक्षा के लिए अध्ययन सामग्री: सामान्य ज्ञान - "आध्ुनिक भारत"
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सन् 1857 की क्रांति
10 मई, 1857 ईॉ को सैन्य विद्रोह मेरठ से आरंभ हुआ। यह विद्रोह धीरे-धीरे एक बड़े क्षेत्रा में विस्तृत हो गया तथा जनव्यापी विद्रोह का रूप धारण कर लिया। इसे भारत का ‘प्रथम स्वंतत्राता संग्राम’ भी कहा जाता है। बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश के अलावा विद्रोह का प्रसार राजस्थान में कोटा, अलवर भरतपुर, मध्यप्रदेश में इंदौर, महासागर आदि स्थानों में भी था।
1857 ईॉ के विद्रोह के संबंध मे विभिन्न मत
सर जान लारेंस व सीले यह पूर्णयता
सिपाही विद्रोह था
डा. ईश्वरी प्रसाद
यह स्वतंत्राता संग्राम था
मिस्टर के
एक सामंतवादी प्रतिक्रिया थी
डा. रामविलास शर्मा जनक्रांति थी
डिजरायेली
यह राष्ट्रीय विद्रोह था
जेम्स आउट्रम, डब्लू टेलर अंग्रेजों
के विरूद्ध, हिंदू-मुस्लिम षडयंत्रा था
एल.आर.रीस
ईसाई धर्म के विरुद्ध एक धर्मयुद्ध था
टी.आर.होम्स
सभ्यता एवं बर्बता का संघर्ष था
वीर सावरकर, अशोक मेहता यह विद्रोह राष्ट्रीय स्वतंत्राता के लिए
सुनियोजित युद्ध था
आर.सी. मजूमदार
1857 का विद्रोह स्वतंत्राता संग्राम नहीं था 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था
जिसका तत्कालीक कारण चर्बीयुक्त कारतुस था
पी.राबर्टस
डा. एस.एन.सेन
यह विद्रोह राष्ट्रीयता के अभाव में स्वतंत्राता संग्राम था।
1857 का विद्रोह
अवधि | विद्रोह क्रेन्द्र | नेता | विद्रोह दमन |
11 मई, 1857 - 20 सितंबर, 1858 ई. | दिल्ली | बहादुरशाह द्वितीय | निकोलसन, लारेंस |
20 मई, 1857 - 1 मार्च, 1858 ई | लखनऊ | बेगम हजरत महल | कैम्पबेल |
4 जून, 1857 - 15 मार्च, 1858 ई. | कानपुर | नाना साहब | कैम्पबेल, हेवलाक |
5 जून, 1857 - 4 अप्रैल, 1858 ई. | झांसी | रानी लक्ष्मीबाई | ह्यूरोज |
20 जून, 1857 - 10 जून, 1858 ई. | इलाहाबाद | लियाकत अली | कर्नल नील |
2 जुलाई, 1857 - 15 जून, 1858 ई. | बनारस | सेना,जनसाधारण | कर्नल नील |
15 जुलाई, 1857 - 20 जून, 1858 ई. | बिहार | कंुवर सिंह | विलियमटेलर |
20 जुलाई, 1857 - 20 जून, 1858 ई. | पंजाब | सेना, जनसाधारण | जान लारेंस |
1857 - 1858 ई. | फतेहपुर | अजीमुल्ला | जनरल रेनर्ड |
1857 - 1858 ई. | फैजाबाद | मौलवी अहमद उल्ला | |
1857 - 1858 ई. | बरेली | खान बहादुर खां, बख्त खां | कैम्पबेल |
1857 के विद्रोह पर चर्चित पुस्तकें
आर.सी.मजूमदार द
सिपाॅय म्यूटिन एंड द रिवोल्ट आॅफ 1857
एरिक स्टोक्स
पीजेन्ड एण्ड द राज
पी.सी. जोशी रिबेलियन 1857
अशोक मेहता द ग्रेट रिबेलियन
जे. डब्ल्यु. के ए हिस्ट्री आॅफ द
सिपाॅय वार इन इंडिया
बी.बी. मालसेन
इंडियन म्यूटिनी आॅफ 1857
एन.एन.सेन
1857
एस.बी. चैधरी थ्योरीज आॅफ इंडियन
म्यूटिनी
एस.पी. चटोपाध्याय द सिपाॅय म्यूटिनी आॅफ 1857, ए
सोशल एनेलिसिस
के.के. सेनगुप्त
रीसेन्ट राइटिंग्स आॅन द रिवोल्ट आॅफ 1857
विनायक दामोदर 1857 का
भारतीय स्वतंत्राता सग्राम
सावरकर
भारत का स्वतंत्रता आंदोलन
19 वीं शताब्दी की अन्तिम चैथाई का काल भारत में राष्ट्रीयता के जन्म का काल माना जाता है। सामाजिक-आर्थिक आन्दोलन, आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार, पे्रस की भूमिका, मध्यवर्ग का उदय तथा ब्रिटिश शासन के आर्थिक परिणाम ने भारत में राष्ट्रवादी आकांक्षा को जन्म दिया। भारत में सामाजिक और धर्मिक सुधार आंदोलनों ने भारतीयों को अनेक सुनहरे अतीत की याद दिलाकर उनमें आत्मबल व विश्वास तथा राष्ट्रवाद की भावना को जन्म दिया। दयानन्द सरस्वती ने स्वदेशी राज्य को सर्वाेत्तम बताया तथा ‘भारत भारतियों के लिए है’ का नारा दिया साथ में वेदशास्त्रा को सर्वोपरि और अकाट्य बताया। अंग्रेजों द्वारा भारत में अपनायी गई आर्थिक नीतियों के परिणाम स्वरूप भारत के संसाधनों का बड़े पैमाने पर दोहन हुआ, मुक्त व्यापारिक अंग्रेजी नीति ने भारतीय हस्तशिल्प उद्योग को नष्ट कर दिया। अंग्रजों को आर्थिक शोषण की नीति का खाका सबसे पहले दादा भाई नौरोजी ने खींचा। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को मुख्य रूप से तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है ये चरण हैं-
प्रथम चरण (1885 - 1905 ईॉ)
द्वितीय चरण (1905 - 1919 ईॉ)
तृतीय चरण (1919 - 1947 ईॉ)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
ह्यूम ने 1884 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। जिसका प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर, 1885 को बम्बई स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में आयोजित किया गया था।
क्रान्तिकारी आतंकवाद का प्रथम चरण (1905-1915)
क्रांतिकारी आतंकवाद के प्रमुख केन्द्र बंगाल, पंजाब, महारष्ट्र में सक्रिय क्रान्तिकारियों ने तिलक द्वारा दिये गये नारे ‘अनुनय विनय नहीं बल्कि युयुत्सा’ के नारे को अपना आदर्श वाक्य बनाया। भारत में क्रान्तिकारी गतिविधियों की शुरूआत 1897 में महाराष्ट्र से माना जाता है।
1918 में पेश की गई विद्रोही समिति की रिपोर्ट में महाराष्ट्र
के पुणे जिले के चितपावन ब्राह्ममणों को आतंकवाद (भारत में) शुरू करने का श्रेय दिया
गया।
1838 में कोलकाता में स्थापित लैण्ड होल्डर्स सोसाइटी भारत की प्रथम राजनीतिक संस्था
थी।
1843 में बंगाल ब्रिटिश एसोसिशन की स्थापना हुई।
18 अक्टूबर, 1851 को ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की कलकत्ता में स्थापना हुई।
26 जुलाई, 1876 में इंडियन एसोसिएशन की स्थापना कलकत्ता में हुई।
1866 में लन्दन में ईस्ट इण्डिया एसेसिशन की स्थापना हुई।
1884 में मद्रास में मद्रास महाजन सभा की स्थापना हुई।
1877 मंे पूना में पूना सार्वजनिक सभा की स्थापना हुई।
1885 में बंगाल में इण्डियन लीग की स्थापना हुई।
1885 में बम्बई में ‘बम्बई पे्रसीडेंसी एसोएिशन’ की स्थापना हुई
1883 में कलकत्ता में नेशनल काॅन्फ्रेन्स नामक अखिल भारतीय संगठन का सम्मेलन आयोजित
हुआ।
गदर पार्टी - 1913
गदर पत्रिका के नाम पर ही ‘हिन्दू एसोसिएशन आॅफ अमरीका’ का नाम ‘गदर आन्दोलन’ पड़ गया। गदर आन्दोलन ने सेन फ्रांसिस्को मंे ‘युगान्तर आश्रम’ की स्थापना की और यहीं से अपनी गतिविधियों का संचालन किया। लाला हरदयाल, भाई परमानन्द और रामचन्द्र गदर पार्टी के प्रमुख नेता थे।
बंगाल विभाजन (1905)
बंगाल स्वतंत्राता आन्दोलन के लिए भारतीय राष्ट्रीय चेतना का केन्द्रबिन्दु था। तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी ब्रिटिश भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला प्रान्त था। इसमें पश्चिमी एवं पूर्वी बंगााल के अतिरिक्त उड़ीसा व बिहार भी शामिल थे। विभाजन के फलस्वरूप पूरे देश में शोक की लहर फैल गई। 16 अक्टूबर, 1905 को पूरे बंगाल मंे शोक दिवस के रूप में मनाया गया।
सूरत में कांग्रेस का विघटन (1907)
1907 में सूरत में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में उदारवादियों और उग्रवादियों में अध्यक्ष के पद को लेकर (विवाद 1905 में वाराणसी में कांग्रेस अधिवेशन से शुरू हुआ था) कांग्रेस का विभाजन हो गया। सूरत का कांग्रेस अधिवेशन 26 दिसंबर, 1907 को ताप्ती नदी के किनारे हुआ।
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन के प्रमुख सदस्य
(1) दादा भाई नौरोजी
(2) फिरोजशाह मेहता
(3) दीनाशा एदलजी वाचा
(4) काशीनाथ तैलंग
(5) वी राधवाचारी
(6) एन.जी.चन्द्रावकर
(7) एस. सुब्रह्माण्यम
मुस्लिम लीग की स्थापना (1906)
ढाका के नवाब सलीमुल्लाह के नेतृत्व में 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में आयोजित एक बैठक में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की घोषणा की गई। मुस्लिम लीग के प्रथम अध्यक्ष वकार-उल-मुस्ताक हुसैन थे। नवाब सलीमुल्ला इसके संस्थापक अध्यक्ष थे।
मार्ले-मिन्टो सुधार (1909)
लार्ड कर्जन के बाद लार्ड मिन्टो भारत के गवर्नर जरनल बने तथा इंगलैण्ड में मार्ले ने भारत सचिव का पद संभाला। यह वह समय था जब समूचा भारत राजनैतिक अशान्ति की तरफ धीरे-धीरे बढ़ रहा था। मार्ले-मिन्टो सुधारों के संकल्पना और निर्माण में उदारवादी नेता गोपाल कृष्ण गोखले के सलाह मशविरे को भी स्थान दिया गया। 1909 के सुधारों के पीछे सरकार की दृढ़ इच्छा थी। कांग्रेस के नरम अथवा उदारवादी नेताओं को प्रसन्न करना और साम्प्रदायिकता की भावना को दृढ़ करके उग्रवाद तथा क्रान्तिकारी राष्ट्रवाद की शक्तियों का दमन करना।
कामागाटमारू प्रकरण (1914)
नवम्बर, 1913 में कनाडा की सर्वोच्च अदालत ने ऐसे 35 भारतीयों को कनाडा में प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी जो सीधे भारत से कनाडा नहीं आये थे। 35 भारतीयों के कनाडा में प्रवेश मिलने से उत्साहित सिंगापुर के एक भारतीय मूल के व्यापारी गुरदीत सिंह ने कामागाटामारू नामक एक जहाज को किराये पर लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया के करीब 376 यात्रियों को बैठाकर बैंकुअर की ओर प्रस्थान किया।