(Sample Material) रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB आरआरबी) परीक्षा के लिए अध्ययन सामग्री: सामान्य ज्ञान - "अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संगठन"
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संयुक्त राष्ट्र संघ
प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति स्थापना के लिए राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी, लेकिन राष्ट्र संघ अपने उद्देश्य में असफल रहा और द्वितीय विश्व युद्ध हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के विध्वंसकारी प्रभावांे ने राष्ट्रांे को पुनः विवश किया कि वे एक ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना करें जिससे उनके पारस्परिक विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जा सके तथा विश्व मंे शंति एवं सुरक्षा स्थापित की जा सके। अतः युद्ध के दौरान ही राष्ट्रांे ने इसके लिए प्रयास आरम्भ कर दिए थे। उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप सन् 1945 मे सैनफ्रांसिस्को सम्मेलन हुआ तथा 25 जनवरी, 1945 को 51 राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किए। परन्तु चार्टर के प्रावधान तुरन्त लागू नहीं किए गए। राष्ट्रों के अनुसमर्थन के बाद 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की विधिवत स्थापना हुई।
संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्भव
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के लिए राष्ट्रों द्वारा जो प्रयास किए गए वे निम्नलिखित है µ
सेन्ट जेम्स की घोषणा - लन्दन के सेन्ट जेम्स महल में मित्रा
राष्ट्रांे ने शांति स्थापित करने की इच्छा से 12 जून 1941 को एक घोषणा पर
हस्ताक्षर किया जिसे सेन्ट जेम्स घोषणा कहा गया।
अटलांटिक चार्टर - 14 अगस्त 1941 को चर्चिल एवं रूजवेल्ट ने हस्ताक्षर किए।
इस चार्टर मंे उन्होंने नाजीवाद को समाप्त करने का संकल्प लिया तथा राज्यों की
समानता, सार्वभौमिक शांति, सामूहिक सहयोग, विजय द्वारा प्रदेशांे के अधिग्रहण पर
निषेध आदि सिद्धान्तांे के प्रति अपनी आस्था प्रकट की।
संयुक्त राष्ट्र घोषणा - 1 जनवरी 1942 को वांशिंगटन मंे 26 राष्ट्रांे का एक
सम्मेलन हुआ जिसमंे धुरी राष्ट्रों को ‘संयुक्त राष्ट्र’ नाम दिया गया। इसमें शत्राु
के खिलाफ संयुक्त मोर्चा खोलने पर दिया गया। अप्रैल 1945 तक 47 राष्ट्रांे ने इस पर
हस्तारक्षर किए थे।
मास्को घोषणा - 30 अक्टूबर 1943 को ब्रिटेन, अमरीका, रूस तथा चीन के प्रतिनिधि मास्को मंे एकत्रित हुए तथा उन्हांेने एक घोषणा पर हस्ताक्षर किया जिसे मास्को घोषणा कहते हैं। इस घोषणा मंे उन्हांेने शत्राु के खिलाफ संयुक्त कार्यवाही करने का संकल्प लिया तथा विश्व संस्था की स्थापना पर जोर दिया जो राष्ट्रांे की समानता के सिद्धान्त पर आधाारित हो, सभी देशों के लिए खुली हो तथा अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा बनाए रखे।
तेहरान सम्मेलन - 1 दिसम्बर 1943 को चर्चिल, स्टालिन तथा
रूजवेल्ट ने तेहरान में एक घोषणा पत्रा पर हस्ताक्षर किए। जिसमंे एक विश्व संस्था
के निर्माण की बात कही गयी।
डम्बरटन µ ओक्स-सम्मेलन µ इस सम्मेलन मंे विश्व संस्था की रचना, कार्य, मुख्य अंग
के विषय मंे विस्तारपूर्वक विचार किया गया तथा ब्रिटेन, रूस, चीन तथा अमरीका ने भावी
संस्था का नाम ‘संयुक्त राष्ट्र’ रखने पर अपनी सहमति दे दी।
याल्टा सम्मेलन - यह सम्मेलन 4 से 11 फरवरी 1945 के मध्य आयोजित हुआ। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना मंे विशिष्ट स्थान रखता है। क्यांेकि इस सम्मेलन में भावी संस्था के रूप तथा प्रकृति का अंतिम खाका तैयार किया गया।
सैन-फ्रांसिसको सम्मेलन µ यह सम्मेलन 25 अप्रैल से 25 जून 1945 तक चला। इसकी अध्यक्षता लार्ड फैक्स ने की थी। इसमंे भारत का प्रतिनिधित्व वी.टी. कृष्णामाचारी, सर रामास्वामी मुदालियर तथा फिरोज खान नून ने किया। 26 जून 1945 को 50 राष्ट्रांे के प्रतिनिधियांे ने हस्ताक्षर किए (51 वंे सदस्य के रूप मंे पोलैण्ड ने बाद मंे हस्ताक्षर किए) 10 फरवरी 1946 को लंदन के वेस्टमिनस्टर हाल मंे संयुक्त राष्ट्र आम सभा की प्रथम बैैठक हुई। इसमंे संयुक्त राष्ट्रसंघ को विभिन्न पदाधिकारियांे का चुनाव हुआ, आम सभा के विभिन्न समितियों का गठन हुआ परन्तु राष्ट्र संघ को समाप्ति की घोषणा नहीं हुई। 19 अप्रैल 1946 को एक प्रस्ताव पारित कर यह घोषणा की गयी की राष्ट्र संघ का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ का उदय हुआ।
संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रस्तावना
संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रस्तावना के अनुसार ‘हम संयुक्त राष्ट्र के लोग’ निम्नलिखित निश्चय करते है -
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आने वाली पीढ़ियों को युद्ध के प्रकोप से बचाएंगे, जिन्हांेने हमारे जीवन काल मंे मानवता को अकथनीय दुःख दिया है।
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मौलिक स्वतन्त्राताएं एवं मानवीय अधिकारांे, उनकी प्रतिष्ठा तथा व्यक्ति एवं पुरूष और महिलाआंे के समान अधिकार होते तथा बड़े राष्ट्रांे की समानता आदि के प्रति अपनी आस्था पुनः प्रकट करते है।
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ऐसी दशाओं को स्थापित करने का निश्चय करते है जिनसे संधियांे तथा अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अन्त òोतों से उत्पन्न उत्तरदायित्वांे को आदर तथा न्याय दिया जा सके।
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सामाजिक उन्नति तथा अधिक विस्तृत क्षेत्रा मंे जीवन के उच्चतर स्तर को बढ़ावा देना।
इन उद्देश्यांे की प्राप्ति के लिए
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सहिष्णुता का व्यवहार तथा शांति से एक-दूसरे के साथ अच्छे पड़ोसियों की भांति रहने।
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अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा स्थापित करने हेतु अपनी शक्ति को एकत्रित करने।
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सिद्धान्तों द्वारा विश्वास दिलाएंगे की सामान्य हितांे के अलावा कभी शस्त्रा प्रयोग न करेंगे।
संयुक्त राष्ट्र का उद््देश्य
संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य चार्टर के अनुच्छेद एक में वर्णित है। ये उद्देश्य हैः
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अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा की व्यवसथा करना।
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राष्ट्रो के बीच पारस्परिक मैत्राी को विकसित करना।
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विश्व की विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और अन्य मानवीय समस्याओं का सामाधान करना।
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उपर्युक्त उददेश्यों की प्राप्ति के लिए राष्ट्रो के कार्यो में समन्वय रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र को केन्द्र बनाना।
संयुक्त राष्ट्र का उद््देश्य
संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्त का वर्णन चार्टर के अनुच्छेद 2 में किया गया है ये निम्नलिखित हैः-
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संयुक्त राष्ट्र संघ अपने सभी सदस्यांे की सर्वव्यापी के सिद्धान्त पर आधारित संस्था है।
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प्रत्येक सदस्य संयुक्त राष्ट्र संघ के संविधान के अनुसार अपने उत्तरदायित्व का पूर्ण निष्ठा के साथ निर्वाह करेगा।
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सभी सदस्य राष्ट्र आपसी विवादों का समाधान शांति पूर्ण तरीके से करेंगे।
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कोई भी सदस्य राष्ट्र आपसी विवादांे का समाधान शांति पूर्ण तरीके से करेंगे।
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कोई भी सदस्य राष्ट्र, किसी राज्य की प्रादशिक अखण्डता तथा राजनीतिक स्वतन्त्राता के विरूद्ध बल प्रयोग नहीं करेगा।
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कोई भी सदस्य राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के विरूद्ध कार्य करने वाले देश की सहायता नहीं करेगा।
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संयुक्त राष्ट्र संघ इस बात का प्रयत्न करेगा कि गैर-सदस्य राष्ट्र की शांति एवं सुरक्षा के विपरीत कार्य नहीं करे।
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संयुक्त राष्ट्र संघ किसी देश के आंतरिक मामलांे मंे हस्तक्षेप नहीं करेगा।
संक्षेप मंे µ प्रजातन्त्रा, आत्मनिर्णय, समानता, बहुमत, विधि का शासन, न्याय, शांतिपूर्ण परिवर्तन, शक्तियांे का पृथक्करण, संघवाद एवं प्रदत्त्त अधिकार आदि संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य सिद्धान्त है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता
संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य दो प्रकर के हैं (1) प्रारम्भिक सदस्य (2) निर्वाचित सदस्य। संयुक्त राष्ट्र संघ के वे भी प्रारम्भिक सदस्य हंै जिन्हेंने सैन-फ्रांसिस्को सम्मेलन मंे हस्ताक्षर किए थे, ऐसे राज्यों की संख्या 51 थी। इसके अतिरिक्त निर्वाचित सदस्य वे है जो शांति प्रिय हैं, और संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तांे में आस्था रखते हैै।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 4 मंे कहा गया है कि संघ के नए सदस्य राष्ट्र के लिए आवश्यक है कि -
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वह एक सम्प्रभु राज्य हो।
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वह शांति प्रिय हो।
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वह चार्टर मंे वर्णित उत्तरदायित्वों को स्वीकार करता हो।
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संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयांे से उत्पन्न उतरदायित्वांे को पूरा करने में सक्षम हो।
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इन उत्तरदायित्वांे को पूर्ण करने की इच्छा रखता हो।
इन शर्तों को पूरा करने वाला राज्य संघ का सदस्य बन सकता है लेकिन इसके लिए साधारण सभा का दो-तिहाई बहुमत और स्थायी सदस्यांे का सर्वसम्मति से समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है
सदस्यांे का निष्कासन
चार्टर के अनुच्छेद 6 के अनुसार यदि कोई सदस्य जान-बूझकर तथा लगातार चार्टर मंे वर्णित सिद्धान्तांे का उल्लंघन करता है तो उसे सुरक्षा परिषद के सुझाव पर महासभा द्वारा संस्था से निकाला जा सकता है। इसके लिए सुरक्षा परिषद के 9 सदस्यांे की सकारात्मक सहमति (पाँचों स्थायी सदस्य सहित) तथा महासभा के दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत आवश्यक है।
सदस्यांे का निलम्बन
संयुक्त राष्ट्र का वह सदस्य जिसके विरूद्ध अध्याय 7 के अन्तर्गत सुरक्षा परिषद सामूहिक कार्यवाही कर रही है, निलम्बित किया जा सकता है। ऐसे सदस्यांे को सुरक्षा परिषद के सुझाव पर महासभा निलम्बित कर सकती है। इस प्रकार निलम्बर के लिए महासभा एवं सुरक्षा परिषद दोनों की कार्यवाही आवश्यक है, जबकि निलम्बित राज्य की पुनः स्थापना केवल सुरक्षा परिषद कर सकती है।